Last Updated on February 10, 2024 by अनुपम श्रीवास्तव
अयोध्या से निकलने के बाद ज्यों ज्यों हम अपने गंतव्य वाराणसी के निकट पहुचे, मार्ग में वाहनों की संख्या बढ़ती चली गई और कुछ ही समय में यातायात थमा हुआ प्रतीत होने लगा।
लगभग रेंगते हुए अंततः हमारे चालक महोदय ने हमे बताया कि अब हम अपने गंतव्य के निकटतम स्थान पर पहुंच गए हैं, यहां से आगे बड़े वाहन नहीं जायेंगे, अतः हमे अब ई रिक्शा का सहारा लेना होगा।
हमने वहां से दो ई रिक्शा लिए और चल पड़े अपने वाराणसी रहवास की खोज में।
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हमारा वाराणसी का रहवास
दोनो वाहनों के मिलते बिछड़ते हम एक स्थान पर पहुंचे जहां हमे बताया गया की आगे की यात्रा पैदल ही करनी होगी। इसी बीच हमने होटल अल्का में सूचना दी कि हम लोग आ रहे हैं और निकट ही हैं |
उन्होंने बताया कि आप अमुक स्थान पर पहुंचिए, हम किसी को लेने भेज रहे हैं।
इसी बीच हमारा फोन सुप्त अवस्था में चला गया, और परिवार के बाकी सदस्यों से संपर्क टूट गया( क्योंकि जिस रिक्शा में मैं था उसमे मेरे अतिरिक्त प्रखर ही था, जिसके पास मोबाइल नही था) ।
यह एक कठिन घड़ी थी, बिना मोबाइल के वाराणसी के भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में समान के साथ परिवार के अन्य सदस्यों और होटल वाले मित्र को ढूंढना बहुत कठिन था।
अंततः हमने वहां उपलब्ध एक पुलिस कर्मी सज्जन से सहायता मांगी।
उन्हें बताया कि किस प्रकार हम अपने परिवार को ढूंढ रहे हैं, उन्होंने काफी शंका के बाद भी हमे अपना फोन दिया और हमारे परिवार से हमे मिलाया।
हमने उनका धन्यवाद किया, और पत्नीजी के फोन से होटल वाले मित्र को फोन मिलाया और उन्हे ढूंढ कर चल पड़े होटल अल्का की ओर।
यहां से व्हीलचेयर की सुविधा उन लोगों के लिए उपलब्ध है, जिन्हे चलने फिरने में कठिनाई होती है। प्रति व्यक्ति वे 200 रुपए लेते हैं।
अपार जन समुद्र को चीरते हुए, और एक दूसरे का हाथ थामे हम सभी जा पहुंचे होटल अल्का के कार्यालय में।
औपचारिकताएं पूरी करने के पश्चात हमे 3 कमरे उपलब्ध करा दिए गए।
होटल पहुंच कर जैसे ही हमे हमारे कमरे दिखाए गए और होटल के प्रांगण से मां गंगा के दर्शन हुए दिनभर की थकान जैसे नदारद हो गई, और नई ऊर्जा का संचार हुआ।
अब तक दोपहर के 4 बजे से अधिक का समय जा चुका था।
हम सब आज के दिन के बचे हुए समय का उपयोग करना भी चाहते थे, अतः सभी शीघ्र तैयार हो गए।
गंगा घाट की मनोहारी आरती
होटल का पिछला भाग गंगा नदी के मीर घाट पर खुलता था, जहां हम सब पहुंचे।
हमे बताया गया कि मां गंगा की आरती शीघ्र आरंभ होगी।
हमने सामने खड़ी बड़ी से नौका जिसमे पहले से कुछ यात्री सवार थे, उसमे जाने का निर्णय लिया।
नौका के चालक ने हमे बताया कि वो हमे पहले वाराणसी के घाटों की सैर कराएंगे, तद उपरांत वे नौका को दशाश्वमेध घाट के समक्ष विराम देंगे, जहां से हम आरती का मनोहारी दृश्य अपनी स्मृति में समेट सकते हैं।
जैसा कहा वैसा ही हुआ भी, आरती संपन्न होने के उपरांत हमने बचे हुए घाटों का भी अवलोकन किया और उतर गए जहां से यात्रा को आरंभ किया था।
इस नौकविहार के लिए हमे 200 रुपए प्रति व्यक्ति का भुगतान किया।
10 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए यह निशुल्क था।
उनके पास भुगतान करने का UPI का विकल्प था, और हमने उसका ही उपयोग किया।
नौका से उतरकर सभी महिलाओं ने दीपदान किया, तब तक हम पिताजी और बच्चों के लेकर होटल के रेस्टोरेंट जो की प्रांगण में ही बना हुआ था में आसीन हो गए और रात्रि भोज का चुनाव कर लाने के लिए कहा।
इसी बीच बाकी परिवारजन भी आ पहुंचे और हम सभी ने साथ मिलकर भोजन किया।
भोजन गर्म और स्वादिष्ट था। भोजन के उपरांत सभी का शरीर निद्रा देवी की उपासना करना चाहता था, सो हम सभी अपने कमरों में पहुंच गए।
बाबा विश्वनाथ का प्रथम दर्शन
अभी मात्र संध्या के 7 ही बजे थे अतः हमने सपत्नीक यह तय किया कि विश्वनाथ मंदिर के गलियारे का भ्रमण कर लिया जाए साथ ही अगली सुबह की मंदिर यात्रा का भी कुछ अंदाज लग जाए।
इसमें हमारी चाची और पुत्र भी हमारे साथ हो लिए।
हमने घाट की ओर से विश्वनाथ धाम के हाल ही में बने भव्य गलियारे में प्रवेश किया।
कृत्रिम दीप्ति से जगमगाता यह निर्माण बहुत अद्भुत लगता था।
दर्शनार्थियों के लिए विभिन्न सुविधाओं से सुसज्जित इस गलियारे का हमने प्रारंभिक निरीक्षण किया, और फिर शासन द्वारा प्रदत्त लॉकर में अपने फोन जमा करा कर लग गए दर्शन की पंक्ति में।
लगभग 2 घंटे से कुछ अधिक की प्रतीक्षा के बाद कुछ सेकंडों के लिए भगवान महादेव के पवित्र रूप के दर्शन प्राप्त हुए।
बाहर निकल कर, घंटों खड़े रहने से प्राप्त हुई दुर्बलता और शीतल वातावरण ने हमे प्रेरित किया परिसर में उपलब्ध चाय और खान पान की दुकान की ओर।
हमने वहां बैठ कर उष्ण और स्वादिष्ट चाय की चुस्कियों से अपने सुप्तावस्था को प्राप्त होते अंगों में थोड़ी ऊर्जा का संचार कराया।
अब तक रात्रि के साढ़े दस बज चुके थे। अपने निद्रासन पर पहुंच कर हम सब शांति के साथ निद्रा में लीन हो गए।
बाबा विश्वनाथ का विस्तृत दर्शन
अगली प्रातः सभी को जल्दी उठकर भगवान विश्वनाथ के दर्शन करने जाने की योजना थी।
इस हेतु हमने सुगम दर्शन की सुविधा ली थी। (सुगम दर्शन बुक करने हेतु काशी विश्वनाथ के अधिकारिक वेबसाइट पर जाएँ)
इसके लिए हम सब जल्दी उठकर, तैयार होकर गलियारे से अंदर प्रवेश कर गए।
पितृ आज्ञा के रूप में प्राप्त हुए भगवान शिव के आदेश को आज पूर्ण करने की बेला आ गई थी।
भक्तिभाव हम सभी की अंतरात्मा में पूरे उफान पर था।
ओम नमः शिवाय का घोष करते हुए हम सभी ने बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक के दर्शन किए,और परिसर में स्थित अन्य मूर्तियों और मंदिरों के दर्शन भी किए।
मंदिर के गर्भगृह के समीप से ही माता अन्नपूर्णा का मंदिर भी दृष्टिगोचर हो रहा था।
अतः हमने वहां जाने की योजना बनाई, किंतु निकट पहुंच कर ज्ञात हुआ कि दर्शनार्थियों की कतार बहुत लंबी है, अतः माता के दर्शन की योजना स्थगित कर दी गई।
पर इस अवसर पर हमने पास ही उपलब्ध एक पान की दुकान से बनारसी पान का स्वाद लिया जो की अपनी प्रसिद्धि के अनुरूप ही था।
वाराणसी के नगर कोतवाल – भगवान काल भैरव के दर्शन
जैसा कि कहा जाता है, वाराणसी यात्रा भगवान काल भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है, सो हम सब चल पड़े काल भैरव मंदिर की ओर।
साइकिल रिक्शा पर सवार होकर, अपार भीड़ को चीरते हुए हम सब उस स्थान पर पहुंचे जहां काल भैरव मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग का संकेतक लगा था, और यहां से यात्रा पैदल ही करनी थी।
गली में प्रवेश करने पर स्थानीय लोगों ने कहा कि ये जो लोग कतारबद्ध खड़े हैं, ये सभी भैरव बाबा के दर्शनार्थ हैं, सो हम भी उनमें शामिल हो गए।
कतार आगे बढ़ती जाती थी और एक गली से दूसरी गली में मुड़ जाती थी।
कई सारी गलियों में मुड़ने और एक लंबी अवधि तक खड़े रहने के उपरांत अंततः हम मंदिर के द्वार पहुंच गए।
यह एक बहुत छोटा प्रवेश द्वार था( उपस्थित जन समूह की तुलना में)। किसी प्रकार हम मंदिर के अंदर प्रविष्ट हो गए, जहां मनुष्यों का घनत्व बहुत अधिक था।
अधिक भीड़ के कारण गर्मी, श्वास लेने में कठिनाई और सबसे भयावह भगदड़ का भय था।
एक दूसरे का हाथ थामे किसी प्रकार गर्भ गृह पहुंचे और बाबा के दर्शन किए।
जितनी कठिनाई मंदिर में प्रवेश करने में हुई, उससे अधिक कठिनाई वहां से निकास में हुई।
अंततः हमे इस बात की प्रतीति हुई, की कदाचित इतनी कठिनाई से दर्शन हमारे पुराने पापों का दंड हो सकता है।
स्थानीय और अनुभवी लोगों से चर्चा के उपरांत ज्ञात हुआ कि अन्नपूर्णा मंदिर हो, या काल भैरव मंदिर या अन्य कोई भी मंदिर, यदि दर्शन प्रातः 7 बजे तक कर लिए जाएं तो ही सुगमता से होंगे, अन्यथा लंबी कतार और भीड़ भाड़ से आपका सामना निश्चित है।
अंततः सभी क्लांत अवस्था में बाहर आए, और मार्ग में सजी दुकानों और विभिन्न विक्रेताओं से कुछ खरीददारी का आनंद लिया।
बाहर आकर पुनः एक बार जन समुद्र को पार कर हम अपने होटल पहुंचे।
काशी के जीवंत बाजार और स्वादिष्ट खान-पान
होटल पहुंचकर हम सभी ने भोजन किया, और तय किया कि निद्रा देवी के प्रसाद से शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर की जाए।
तभी हमसे मिलने वाराणसी में रहने वाले मामाजी और मामीजी आए और हम सभी को उनसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई।
सूर्यास्त होने को था तो हमने तय किया कि वाराणसी यात्रा के कुछ चिन्ह अपने साथ ले जाएं, अतः हम आस पास के दुकानों में खरीददारी करने पहुंचे।
बनारसी रेशम और हथकरघा के बने उत्पाद और अन्य वस्तुएं लेकर हमे बहुत हर्ष हुआ।
अब तक उदर से भूख भूख के ध्वनि सुनाई देने लगी थी, और वाराणसी अपने मंदिरों के अतिरिक्त, गलियों, संगीत और विभिन्न खाद्य पदार्थों के लिए भी प्रसिद्ध है।
सो हमने तय किया आज बनारस की गलियों में मिलने वाले विभिन्न पदार्थों का स्वाद लिया जाए।
इसके लिए हमने चाट के कुछ प्रकार और रबड़ी ली, जो अपनी कीर्ति के अनुरूप थी।
अगले दिन दोपहर बाद हमारी वापसी यात्रा आरंभ होनी थी। अतः हमने अपनी तैयारियों को पूर्ण किया और तय किया की प्रातः 6 बजे माता अन्नपूर्णा के दर्शन किए जायेंगे।
माता अन्नपूर्णा मंदिर और नौका विहार
प्रातःकाल उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर हम चल पड़े जगत को भोजन कराने वाली देवी के दर्शन करने।
सौभाग्य से इस बार मंदिर में नाम मात्र के लोग थे, दर्शन बड़ी सुगमता से हुए, प्रसाद भी मिला।
इसके उपरांत हम सब पहुंचे विश्वनाथ मंदिर के गलियारे में पहुंचे।
यहां उपलब्ध विभिन्न स्वाद के व्यंजनों की दुकानों से हमने सभी के लिए सुबह के नाश्ते की व्यवस्था की। लौटते हुए विशालाक्षी मंदिर के भी दर्शन किए।
इतना सब करने के बाद भी कुछ समय बाकी था, इसलिए हमने गंगा नदी में नौका विहार करने का मन बनाया।
यद्यपि प्रातः के 9 बज चुके थे और सूर्यदेव अपना प्रकाश फैला रहे थे, किंतु नदी और आसपास के क्षेत्रों पर कोहरे की एक घनी चादर थी।
कोहरे के कारण सूर्य की तीव्रता कुछ कम हो गई थी।
कोहरे और धूप की यह अठखेलियां एक अनुपम दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं।
शीत ऋतु की तीक्ष्णता भी कुछ कम जान पड़ती थी, जिस कारण नौका विहार का आनंद दोगुना होगया।
घाट पर उतरकर हमने ताजे और रसीले अमरूद लिए, जो कि बहुत स्वादिष्ट थे।
नमक और चटनी के साथ इनका स्वाद और निखर गया था।
वाराणसी से विदाई
होटल पहुंचकर वापसी यात्रा की तैयारी पूर्ण की, होटल के प्रबंधक महोदय को कमरे खाली करने की सूचना दी, और उनके कर्मचारियों के सहायता से बाहर पहुंचे।
यहां से हम ई रिक्शा से वाराणसी जंक्शन स्टेशन पहुंचे।
कामायनी एक्सप्रेस के आने में कुछ समय था, अतः हमने यह समय निर्धारित प्लेटफार्म पर ही बिताया।
रेलगाड़ी अपने निर्धारित समय पर आई।
सामान की अधिकता के कारण हमने दो भारिकों की सेवाएं लीं, जिन्होंने हमे समान के साथ निर्धारित शायिकाओं पर बैठा दिया।
रेलगाड़ी हमारे गंतव्य,हमारे गृह नगर की ओर चल दी। यह एक लंबी लगभग 14 घंटे की यात्रा थी।
हम सभी को साइड लोअर और साइड अपर शायिकाएं आवंटित हुई थीं।
इन पर बैठकर बाहर के मनोरम दृश्य देखते हुए अंधकार होने तक हम बैठे रहे।
तत्पश्चात अपने साथ लाए भोजन को ग्रहण किया और अपनी अपनी शयिकाओं पर निद्रा में लीन हो गए।
गंतव्य आने का सही समय प्रातः 0530 था, परंतु बीच में कुछ विलंब के कारण हम लगभग एक घंटे देरी से पहुंचे।
बीना के स्टेशन पर हरी भैया अपने ऑटो रिक्शा के साथ हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे।
बीना में वातावरण में वाराणसी की तुलना में शीत का प्रभाव अधिक था, और कोहरे के कारण कम दिखाई दे रहा था।
अंततः घर पहुंच कर हम सभी ने गर्म गर्म चाय की चुस्कियों के साथ यात्रा को विराम दिया।
इस दिन दिसंबर महीने की 28वी तिथि आ चुकी थी।
कुछ दिनों के उपरांत हम सभी ने भगवान सत्यनारायण की पूजा की और अपनी सफल और सकुशल यात्रा संपन्नता के लिए उन्हें धन्यवाद प्रेषित किया।
-जय बाबा विश्वनाथ –
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