Last Updated on October 23, 2023 by अनुपम श्रीवास्तव
बाघ की गुफाएं (Tiger Cave) सुनकर आपको कुछ ऐसा लग रहा होगा कि हम एक ऐसे स्थान पर जा रहे हों जहाँ कुछ गुफ़ाएँ और इनमें निवास करते हुए भयानक बाघ हैं |
चलिए आप यह तो सोच ही रहे होंगे कि वहां कम से कम कुछ ऐसा इतिहास देखने को मिलेगा कि कभी बाघ वहाँ रहा करते थे |
पर क्या आप जानते हैं कि वास्तविक स्थिति इससे कोसों दूर है |
जी हाँ !
बाघ गुफा एक छिपा हुआ स्थान है जो चेन्नई से महाबलीपुरम जाते समय मशहूर ईस्ट कोस्ट मार्ग पर पड़ता है और अक्सर लोगों का ध्यान यहाँ पर नहीं जाता है |
यह वास्तव में एक स्मारक जैसा है जिसको 8 वीं शताब्दी में पल्लवों द्वारा निर्मित महाबलीपुरम के नक्काशीदार मंदिरों में से एक माना जाता है।
मेरी चेन्नई की यात्रा के दौरान मुझे इस स्थान को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और यकीन मानिए आपको इसे बिलकुल भी मिस नहीं करना चाहिए |
इस यात्रावृतांत में मैं आपको बताऊंगा कि बाघ की गुफाएं कहां स्थित है और यहाँ आ कर आप क्या क्या देख सकते हैं |
बाघ की गुफाएं | Tiger Cave Mahabalipuram | एक नज़र में
टाइगर केव चट्टानों को काट कर बनाया गया एक हिन्दू मंदिर है जिसपर बाघ के सिरों की नक्काशी की गयी है |
बाघ गुफा का निर्माण पल्लव काल में 8 वीं शताब्दी के दौरान हुआ था और उस समय इसे एक ओपन एयर थिएटर के रूप में इस्तेमाल किया जाता था जहाँ सांस्कृतिक गतिविधियाँ हुआ करती थीं|
आइये जानते हैं इस स्थान से सम्बंधित कुछ और जरूरी जानकारियां :-
बाघ की गुफाएं कहां स्थित है?
बाघ की गुफा भारत के तमिलनाडु में महाबलिपुरम के पास सालुवंकुप्पम नामक स्थान में स्थित है |
यह स्थान चेन्नई से लगभग 52 किलोमीटर और महाबलीपुरम से 5 किलोमीटर की दूरी पर है |
बाघ गुफा कैसे जाएँ?
सड़क मार्ग
महाबलिपुरम तमिलनाडु के प्रमुख शहरों चेन्नई, पांडिचेरी, मदुरै और कोयम्बटूर आदि से सड़क मार्ग से जुड़ा है।
राज्य परिवहन निगम की नियमित बसें अनेक शहरों से महाबलिपुरम के लिए जाती हैं और बाघ गुफा कुछ दूर पहले ही है |
CMBT कोआम्बेडु बस टर्मिनल, चेन्नई से महाबलीपुरम के लिए प्रति दिन 5 से 8 सिटी बसें उपलब्ध हैं जिनका किराया 35 से 50 रु तक है |
चेन्नई से महाबलीपुरम तक एक तरफ की टैक्सी का किराया लगभग 1500-2000 रु है वहीँ दोनों ओर का किराया लगभग 3000-4000 रु आता है |
रेल मार्ग
महाबलिपुरम का निकटतम रेलवे स्टेशन चेन्गलपट्टू जंक्शन है जो यहाँ से 29 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
चेन्नई और दक्षिण भारत के अनेक शहरों से यहां के लिए रेलगाड़ियों की व्यवस्था है।
वायु मार्ग
महाबलिपुरम से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चेन्नई में निकटतम एयरपोर्ट है।
भारत के सभी प्रमुख शहरों से चेन्नई के लिए सीधी उड़ाने हैं।
टाइगर केव जाने का सबसे अच्छा मौसम कौन सा है?
इस स्थान पर साल भर मध्यम और आर्द्र जलवायु होती है वैसे देखा जाये तो यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीने का है।
यहाँ क्या क्या देखें?
बाघ की गुफाएं, सुब्रमण्यम मंदिर, बीच
बाघ की गुफाओं का एंट्री टिकट प्राइस कितना है?
एंट्री टिकट भारतीयों के लिए 25 रुपये है और विदेशियों के लिए 300 रुपये है |
बाघ गुफा में कितना समय रुकना चाहिए?
1- 2 घंटे
देखना न भूलें! |
बाघ की गुफा का इतिहास | Tiger Gufa Mahabalipuram History
महाबलीपुरम का प्रारंभिक इतिहास पूरी तरह से रहस्य में डूबा हुआ है |
कुछ का मानना है कि 10,000 से 13,000 ईसा पूर्व यह क्षेत्र एक भयानक बाढ़ की चपेट में आ कर नष्ट हो गया था |
यह भी माना जाता है कि ३ और ९ वीं शताब्दी के बीच महाबलीपुरम पल्लव राजवंश के आधीन था और पहले से ही बंगाल की खाड़ी में एक संपन्न एवं महत्वपूर्ण पत्तन केंद्र अर्थात बंदरगाह था ।
इस क्षेत्र के उत्खनन से प्राप्त कलाकृतियों और सिक्कों से यह ज्ञात होता है कि पल्लव साम्राज्य का भाग बनने से पूर्व इसके रोमन साम्राज्य के साथ भी व्यापार संबंध रहे थे |
पल्लव राजाओं की वास्तु उपलब्धियों में से एक था मंदिरों की श्रेणी का निर्माण जिन्हें “महाबलीपुरम की सात धरोहर” भी कहा गया |
इनमें से ६ तो अभी तक जलमग्न हो गये हैं और केवल एक जो कि तटीय मंदिर (शोर टेंपल) नाम से प्रख्यात है, अभी भी शेष है|
अधिकांश मंदिरों का निर्माण एवं चट्टानों की नक्काशी का कार्य नरसिंहवर्मन प्रथम (ई. 630-668) और नरसिंहवर्मन द्वितीय (ई. 700-728) के शासन काल के समय हुआ |
हालांकि पल्लव वंश के प्रारंभिक शासक जैन धर्म के अनुयायी थे परंतु राजा महेंद्रवर्मन (ई. 600-630) के शैव धर्म अपनाने के बाद यहाँ की समस्त कृतियाँ शिव और विष्णु संबंधित हो गयीं |
टाइगर गुफाओं की नींव 7 वीं या 8 वीं शताब्दी ईस्वी में पल्लव साम्राज्य द्वारा ही रखी गई थी और वह लोग इस स्थान पर दर्शकों को संबोधित करते थे |
इस स्थान पर कई त्यौहार भी मनाए जाते थे जहाँ देश विदेश से आये कलाकार राजा के सामने प्रस्तुति देते थे|
बाघ की गुफाएं – एक यात्रावृतांत | A Journey to Tiger Cave Mahabalipuram
चेन्नई से महाबलीपुरम
नई नवेली समतल सड़क, दूर दूर तक फैली सघन हरियाली और साथ साथ चलता समुद्र, हम पूर्वी- तटीय (ईस्ट-कोस्ट) मार्ग से महाबलीपुरम की ओर जा रहे थे |
बंगाल की खाड़ी तट के समीप यह मार्ग पॉंडिचेरी होते हुए कन्याकुमारी को जोड़ता है और अनेकोनेक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल इस मार्ग में आते हैं |
चेन्नई से महाबलीपुरम तक की दूरी लगभग 60 कि. मी. है और यह सभी प्रकार के साधनों से सुलभ है|
चार लेन के इस दोहरे मार्ग पर ही देश का पहला इलेक्ट्रॉनिक टोल गेट है। महाबलीपुरम जो मम्लापुरम नाम से भी प्रख्यात है तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में प्रमुख शहरों में से एक है।
अपने ऐतिहासिक अतीत, पारंपरिक विरासत और प्राचीन द्रविड़ सभ्यता के बारे में दर्शाती मूर्तियों और मंदिरों के कारण यह स्थान यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के बीच सूचीबद्ध है।
चेन्नई से महाबलीपुरम के रास्ते में एक छिपा हुआ स्थान
भीतर आते हुए शीतल पवन की झोंकों को रोकने के लिए मैंने अपनी कार की खिड़कियाँ करीब करीब बंद ही कर ली थीं फिर मन नहीं माना तो फिर उन्हें आधा खोल कर बाहर झाँकने लगा |
मैंने सोचा कि ये ही वातावरण यानि दिसम्बर का मौसम यहाँ आने के लिए सबसे उत्तम है |
बैग में से अपनी यात्रा विवरणिका निकाल कर देखा तो पाया कि गंतव्य स्थान से 5 कि. मी. पहले एक ‘टाइगर केव (गुफा) ‘ नामक स्थान पर रुकना मैंने चिन्हित किया था |
नई बनी हुई सड़क पर गाड़ी चलाते हुए हमारा ड्राईवर मुथु बहुत प्रफुल्लित सा लग रहा था और कुछ गुनगुना भी रहा था |
मैने उससे इस स्थान के बारे मे पूछना चाहा तो उसने प्रथंदृष्टया इस बात को अनसुना कर दिया |
मैने तनिक उच्च स्वर में पुन: प्रश्न किया, “वी आर नाऊ गोइंग टू टाइगर केव, यू नो दिस प्लेस” |
मुथु ने हड़बड़ा का उत्तर दिया, ” सॉरी सर, नो दिस प्लेस, वेरी ब्यूटिफुल, ऑल्सो ए बीच बैक साइड” |
मुख्य सड़क से महाबलीपुरम के पाँच कि. मी. पहले ही हमने एक बाँया मोड़ लिया और लगभग 100 मीटर जाने आगे के पश्चात ‘टाइगर गुफा’ परिसर के पार्किंग स्थल पर आ कर रुक गये |
चूँकि यह स्थान अभी बहुत प्रसिद्ध नहीं हुआ था सो किसी को भी सड़क के किनारे बाँये लगे हुए छोटे छोटे बोर्ड (टाइगर केव के बारे में) याद नहीं रहेंगे और वो यहाँ से आगे निकल सकते हैं इसलिए ध्यान देना आवश्यक है |
बाघ की गुफा में प्रवेश
गाड़ी से उतरकर एक सरसरी सी निगाह चारों ओर दौड़ाई तो पता चला कि यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है और उन्होंने समस्त परिक्षेत्र को अति सुंदर एवं सुनियोजित प्रकार से विकसित किया था |
द्वार से भीतर जाते ही एक शिलालेख पर इस स्थान का इतिहास वर्णित था |
ये स्थान भी पल्लवों द्वारा निर्मित मंदिरों में से एक माना जाता है जिसका निर्माण चट्टानों को काटकर 8 वीं शताब्दी में हुआ था |
उत्खनन के समय कुछ चट्टानों के शिलालेख मिलने के पश्चात इस स्थान का अन्वेषण सन् 2005 के आस पास हुआ |
चूँकि यह स्थान अभी अभी विकसित अवस्था में ही था सो यहाँ पर अधिक खाने पीने की अधिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं और वैसे अभी हमें इसकी आवश्यकता भी नहीं थी |
यहाँ बागवानी का कार्य बहुत तीव्रता से चल रहा था, चारों ओर विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे फूलों की क्यारियाँ, ऊँचे-ऊँचे नारियल और जंगली बादाम के वृक्ष थे |
हरी भरी भूमि, वृक्षों की घनी छाया, ऊँची-नीची चट्टानें और पृष्ठभूमि में झुरमुटों के बीच से झाँकता हुआ सागर, इन सब के सामिश्रण से समस्त वातावरण अत्यंत ही रमणीक बन पड़ा था |
बाघ गुफा के मुख्य स्मारक को बड़े ही कुशल ढंग से संरक्षित किया गया था |
11 सिरों वाली यह अद्भुत शिला कृति चारों ओर से खुदी और घेरी हुई थी और पत्थर की संरचना पर उत्कीर्ण बाघ के मुख को विभिन्न आसनों के साथ अलंकृत किया गया था |
माना जाता है कि यह स्थान पल्लव अवधि के समय एक नाट्यशाला के रूप में इस्तेमाल किया जाता था |
कुछ ही दूर पर तीव्र कोण में रखी हुई एक विशालकाय चट्टान दिखी जहाँ हम चित्र खींचने का अपना लोभ सँवारण नहीं कर सके |
सुब्रमण्यम मंदिर और बीच
मुझे लगा कि यहाँ अधिक समय ना लगे क्योंकि हम लोग महाबलीपुरम विलंब से पहुँचेंगे परंतु कलाई देखी तो पाया अभी 9:00 बज रहे थे |
“हम लोग वहाँ अंत तक चलते हैं, देखेंगे क्या मिलता है” श्रीमति जी उत्साहपूर्वक बोलीं |
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि मैं चट्टानों के ऊपर, चढ़ते उतरते और अत्यंत कोलाहल करते हुए मेरे सुपुत्र महोदय को देखने में लीन था |
“चलना नहीं है क्या आगे ?”, श्रीमति जी बोलीं | “हूँ, हाँ-हाँ”, मैंने संक्षेप में उत्तर दिया |
अपने सुपुत्र को आवाज़ दे हम आगे बढ़ चले |
परिसर के एक कोने में चट्टानों को काट कर बनाया हुआ एक अति प्राचीन शिव मंदिर (सुब्रह्मण्य मंदिर) था जो कि भूमि सतह से बहुत नीचे था |
सीढ़ियों से नीचे उतरते ही एक विशाल समतल मैदान और नंदी की एक प्रतिमा दिखी |
शिवलिंग गुफा के भीतर स्थित था, हमने देवाधिदेव के समक्ष सिर नवाया और पूरे स्थान की परिक्रमा पूर्ण की |
अत्यंत ही शांति का अनुभव करते हुए हम लोग सागर तट की ओर निकल पड़े |
घनी झाड़ियों से होते हुए हम तट पर पहुँच गये जहाँ लहरें आनंदित हो कर इधर उधर उठा पटक कर रही थीं |
हम रेत पर चलते चलते अपने पैरों को भिगोते हुए दूर मछली पकड़ने वाली नौकाएँ देख रहे थे जो समुद्र के साथ अठखेलियाँ कर रही थीं |
बालक भी रेत पर रेंगते हुए छोटे-छोटे केकड़ों को पकड़ने में व्यस्त था |
कुल मिला कर यहाँ से किसी को भी वापस जाने का मन नहीं था |
अंततः समय को ध्यान में रखते हुए हम लौट चले और बाहर की ओर आ गये |
जाते जाते सबने नारियल पानी का स्वाद लिया और अपनी गाड़ी में सवार हो कर महाबलीपुरम की ओर चल पड़े |
बाघ गुफा की यात्रा सम्बन्धी जरूरी टिप्स | Tiger Caves Mahabalipuram Travel Tips
1. बाग की गुफा महाबलीपुरम से 5 किलोमीटर पहले ही पड़ता है | चूँकि यह स्थान बहुत प्रसिद्द नहीं है सो रास्ते में लगे बोर्ड पर ध्यान देना आवश्यक है |
2. यह स्थान चेन्नई के सभी हिस्सों से जुड़ा हुआ है इसलिए संसाधनों की कोई कमी नहीं है | ऑटो से इस स्थान पर आने के लिए लगभग 750-1000 रु एक तरफ के लिए देने पड़ेंगे |
3. प्रवेश शुल्क 25 रु है |
4. बाहर कुछ छोटे मोटे नारियल पानी की दुकानों को छोड़कर भीतर कुछ भी खाने-पीने की व्यवस्था नहीं है और शौचालय का भी अभाव है|
5. अगर साथ में बच्चे हों तो कुछ खाने का सामान और पीने का पानी अपने साथ ले जाएँ |
6. पार्किंग शुल्क लगभग 40 रु है |
7. शांत सप्ताहांत के लिए बाघ की गुफाएं अवश्य जाएँ |
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Thanks