Last Updated on April 7, 2024 by अनुपम श्रीवास्तव
इसे हिंदी में चिड़िया टापू (Chidiya tapu) कहें या फिर अंग्रेजी में बर्ड आइलैंड (Bird Island) या सनसेट पॉइंट (Sunset Point), इन सब का एक ही मतलब निकलता है |
अंडमान निकोबार में छिपा हुआ अपने में अनोखा यह एक ऐसा स्थान है जिसे सब चिड़िया टापू के नाम से जानते हैं |
पोर्ट ब्लेयर नगर से लगभग 25 कि.मी. दूर चिड़िया टापू अंडमान निकोबार के दक्षिणी छोर पर स्थित है |
पोर्ट ब्लेयर से चिड़िया टापू आने में लगभग एक घंटे का समय लगता है और पूरा रास्ता पहाड़ और जंगलों से होता हुआ एक मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करता है|
आप चाहे पशु -पक्षियों के दीवाने हों, पहाड़ पर चढ़ाई का शौक हो या फिर एक शांत सूर्यास्त का आनंद लेना चाहते हों तो चिड़िया टापू ज़रूर जाएँ |
अपनी अंडमान निकोबार यात्रा के दौरान हमें इस स्थान को देखने का मौका मिला था |
चलिए अपने यात्रावृत्तांत के माध्यम से आपको चिड़िया टापू के बारे में बताते चलते हैं |
चिड़िया टापू, अंडमान निकोबार – एक नजर में
यात्रा का सबसे अच्छा मौसम – दिसम्बर से मार्च (मई से अगस्त-भारी वर्षा और मध्य सितंबर से नवंबर – मध्यम वर्षा)
यात्रा थीम – फ़ोटोग्राफ़ी, ट्रेकिंग, समुद्रतट, सूर्यास्त, चिड़ियाघर, डाइविंग, जैविक उद्यान, प्रकृति
कैसे पहुंचे – पोर्ट ब्लेयर से चिड़िया टापू की दूरी – 25 किमी (1 घंटा ड्राइव)
ठहरने की अवधि: 2-3 घंटे, पर यहाँ पर एक रात रुकने की सलाह दी जाती है |
चिड़िया टापू यात्रावृतांत | Chidiya Tapu Travelogue
पोर्ट ब्लेयर से चिड़िया टापू तक
मेरी अंडमान यात्रा के दौरान मेरे ड्राईवर सारथ ने बताया कि अब हम चिड़िया टापू नामक स्थान पर जाने वाले थे जो पोर्ट ब्लेयर से लगभग 25 कि. मी. दूर था |
तीव्र गति से दौड़ते हुए हम पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे के पास से निकले जहाँ रंग बिरंगे वायुयानों ने हमारा स्वागत किया |
इनको देखकर मेरे सुपुत्र के आभामंडल पर एक चमक सी आ गयी |
पोर्ट ब्लेयर नगर को पीछे छोड़ते, पहाड़गांव होते हुए हम प्रथरापुर नामक स्थान पर पहुंचे |
“वो रोड देख रहे हैं सर ! गारचर्मा होते हुए वंडूर तक जाती है | शाम को वापस यही से होटल जाना है |”, सारथ ने बताया|
लगभग 15 मिनट बाद ही रंगचांग से निकलते हुए सागर हमारे समीप आ गया था और हरियाली में पूर्णतया वृद्धि हो चली थी |
तत्पश्चात 5-6-कि. मी. आगे जाने पर हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि हम एक घने वन के मुहाने पर खड़े हों |
निकट ही राजीव गाँधी जलकृषि केंद्र का सीमा क्षेत्र दिखाई दिया जो झींगा कृषि उद्योग का समर्थन करने के लिए स्थापित किया गया था |
” अब आप लोग अपनी सीट बेल्ट कस के बाँध लें क्योंकि हम लोग इन ऊंची नीची पहाड़ियों और जंगल से होते हुए चिड़ियाटापू पहुंचेंगे ” | सारथ ने कहा |
मैंने देखा कि इस 4-5 कि. मी. लम्बी यात्रा के दौरान यह संकीर्ण सड़क इन वर्षा वनों के मध्य से घूमते और समुंद्रतट के साथ आंखमिचौली खेलते हुए कभी ऊपर तो कभी नीचे की ओर हो जाती थी |
शाम के 4 बजने को थे और इस घने जंगल में अभी अन्धकार सा लगने लगा था | किसी-किसी स्थान पर जहाँ वृक्षों का घनत्व कम रहता वहां सूर्य देवता के दर्शनों का कदाचित लाभ मिल जाता था परन्तु यात्रा पर्यंत एक झुटपुटा सा वातावरण व्याप्त रहा |
भीतर एक चुप्पी सी थी क्योंकि सभी लोग प्रकृति का आनंद लेने में और सारथ इस कठिन मार्ग पर गाड़ी चलाने में व्यस्त था |
चिड़िया टापू जैविक उद्यान (Biological Park)
एक लम्बा सा चक्कर काटते हुए सारथ ने एक पहाड़ीनुमा स्थान पर गाड़ी को पूर्ण विराम देते हुए कहा “ये चिड़िया टापू बायोलॉजिकल पार्क है और घूमने के लिए अंदर एक बैटरी वाली गाड़ी भी है, और हाँ जल्दी करिये 4 बजे गेट बंद हो जायेगा”|
हम शीघ्रता से एक नीले रंग के मंदिरनुमा छत वाले द्वार से भीतर प्रविष्ट हुए | भीतर जाते ही बाईं ओर एक टिकट खिड़की थी जहाँ पर प्रवेश 20रु (वयस्क) एवं 10 (बच्चों) रु अंकित था |
जैसे ही हम लोग खिड़की के समीप पहुंचे वैसे ही टिकट कर्मी ने अपने पीछे टंगी हुई घड़ी की ओर देखते हुए कहा “ये आज का आखिरी टिकट है, आप लोग जल्दी से जा कर गाड़ी में बैठ जाएँ क्योंकि वह अभी छूटने ही वाली है ” |
मैंने देखा कि सड़क के किनारे, पहाड़ी के ऊपर एक बैटरी चलित वाहन खड़ा था जिसमें पहले से ही 4 व्यक्ति विराजमान थे|
ये वाहन वैसा ही था जैसा किसी गोल्फ के मैदान में रहता हो |
हम लोगों को गाड़ी के पीछे का स्थान मिला, यह एक प्रकार से अच्छा ही था कि यहाँ बैठ कर हम पीछे का पूरा भूभाग देख सकते थे |
गाड़ी मंथर गति से अब एक छोटी से पहाड़ी पर चढ़ने लगी थी |
यहाँ के लोग आस पास के पहाड़ों को मुंडा पहाड़ बुलाते थे और निकटतम समुद्र तट को मुंडा पहाड़ तट कहा जाता था |
यहाँ पहाड़ी के शीर्ष पर से हम नीलवर्णीय सागर,अद्भुत सूर्यास्त और इन पृथक द्वीपों का विस्तार देख सकते थे |
हमारी गाड़ी चिड़िया टापू बायोलॉजिकल पार्क के विभिन्न भागों के चक्कर काटती और कुछ दर्शनीय स्थानों पर रुकती-रुकाती आगे बढ़ती रही |
ये उद्यान विभिन्न प्रकार के महुआ और शीशम के वृक्षों, पक्षियों और सरीसृपों का निवास स्थान जैसा था |
मैंने विचार किया कि किसी सामान्य पशु-वाटिका और जैविक उद्यान के बीच का अंतर समझने और प्रकृति का सम्पूर्ण रसास्वादन करने के लिए समस्त उद्यान का पैदल भ्रमण करना नितांत आवश्यक था |
परन्तु हम सभी समय की कमी से अकसर जूझते रहते हैं |
सघन वृक्षों के मध्य से जाते हुए विभिन्न प्रकार के पक्षियों के कलरव को सुनकर हम मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सके |
इनके अलावा हमने यहाँ जंगली सूअर, हिरन, खारे पानी वाले मगरमच्छ और बहुत सारे पशुओं को देखा |
हमें बताया गया की यह उद्यान लगभग 40 हेक्टेयर में फैला था और निकट भविष्य में यहाँ एक एक्वेरियम (मछली गृह), कीट गृह, सरीसृप गृह और तितली गृह के निर्माण की भी योजना थी |
” शाम होने को है, आप लोग वापस आ गए हों तो अब हम Chidiyatapu की और चलें ” |
” बस हम लोग आ ही गए ” |
सम्पूर्ण क्षेत्र का पुनः अवलोकन करते हुए मैंने कहा |
देखना न भूलें! |
चिड़ियाटापू / मुंडा पहाड़ समुद्रतट
संध्या की लालिमा के साथ साथ ही अब पक्षियों के कलरव में भी पूर्णतया वृद्धि हो चली थी |
पहाड़ी के ऊपरी छोर से हम लोग परिक्रमा करते हुए नीचे की ओर जाने लगे |
अब समुद्र हमारे निकट आ गया था |
सड़क के किनारे किनारे एक दीवार सी बनाई गयी थी जिससे ज्वार के समय पानी सड़क पर न आ सके |
15 मिनट ही चलने के बाद सड़क का समापन हो चला था |
यहाँ पहुँचने पर तनिक आश्चर्य हुआ क्योंकि जैसा विचार था, यह स्थान उससे भिन्न था |
बड़ी संख्या में पर्यटकों और अनेकों वाहनों के कारण वातावरण में एक सूक्ष्म कोलाहल सा व्याप्त था |
निकट ही वन विभाग का एक विश्राम गृह भी था अतः यदि समय हो तो यहाँ पर ठहरा भी जा सकता था |
विश्राम गृह भवन के सामने ही समुद्र का अनंत विस्तार और पृष्ठभूमि में पहाड़ियों की एक श्रृंखला थी जहाँ बैठकर प्रकृति का आनंद लिया जा सकता था |
चूंकि यह स्थान वन विभाग के संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता था सो सुविधाएं सीमित ही थीं |
नारियल पानी की कुछ एक दुकानों के साथ गरमा गर्म चाय और पकौड़ों की भी यहाँ व्यवस्था थी |
हम अपना पानी साथ ही लाये थे जो एक सही निर्णय था |
एक दुकान जिसने सभी का ध्यान आकर्षित किया था वह था ‘ तपन अधिकारी कुल्फ़ी वाला ‘ और यहीं पर सबसे अधिक भीड़ भी थी |
सूर्यास्त का आनंद लेते हुए 30रु की स्वादिष्ट देसी कुल्फ़ी खाना किसे रुचिकर नहीं लगेगा |
द्वार के निकट ही एक सूचना पट्टिका थी जिसपर अंकित था कि अंतिम बार यहाँ मगरमच्छ जनवरी में देखा गया |
अंडमान में बहुधा स्थानों पर ऐसी ही चेतावनियां दी गयीं थी जिसका पालन करना अति आवश्यक भी था |
चार बज के चालीस मिनट हो चुके थे और 5 बजते बजते इस स्थान को बंद कर दिया जाता सो हम शीघ्रता से भीतर प्रविष्ट हुए |
मुंडा पहाड़ समुद्र तट [समुद्र और पहाड़ का संगम]
सड़क जहाँ समाप्त होती थी उसके बराबर में पैदल निकल कर हम पेड़ों के झुरमुट की ओर चल दिये। यहाँ बहुत सारे छोटे-बड़े पेड़-पौधे थे जिनकी पहचान के लिये उनपर नाम लिखी पट्टी लगायी गयी थी |
ऊंचे ऊंचे सघन वृक्षों की श्रृंखला को निहारते हुए हम उन्मुक्त सागर तट पर आ गए |
लकड़ी के विशाल तनों की नक्काशी कर यहाँ बैठने के लिए स्थान बनाये गए थे |
क्षितिज की ओर अग्रसर होते सूर्य देवता अथाह सागर के विशिष्ट रंगों को पल प्रतिपल परिवर्तित करते जा रहे थे जिसकी मनोहर छटा देखते ही बनती थी |
सुनामी की त्रासदी का खाका खींचते, उखड़े हुए वृक्षों के अवशेष एक भावनात्मक एवं अमूर्त वास्तुशिल्प का निर्माण कर रहे थे |
ये स्थान उन फोटोग्राफरों अथवा उपन्यासकारों के लिए भी उपयुक्त था जो हर समय किसी नई दुनिया की खोज में रहते हैं |
यहाँ पर बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के झूले और फिसलपट्टियों की भी व्यवस्था थी जिसका आनंद लेने के लिए हमारे सुपुत्र पहले से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे |
मैंने विचार किया कि ये लोग जब तक इन झूलों का आनंद ले रहे हैं तब तक मैं इधर उधर विचरते हुए अपने कैमरे को तनिक व्यस्त रखूँ |
मंद मंद बयार का आनंद लेते हुए मैं इन उखड़े हुए वृक्षों के सानिद्य में चला गया |
मैंने देखा कि इस स्थान को भली भांति संरक्षित किया गया था, जैसे यहाँ पर स्नानोपरांत पानी के शावर और वस्त्र परिवर्तन के लिए कमरे भी थे |
अत्यधिक धूप से बचने के लिए यहाँ फूस की झोपड़ियां भी बनाई गयी थीं |
दायीं ओर एक सुरक्षित तैराकी क्षेत्र जैसा बनाया गया था जो तीन स्थानों से घिरा हुआ था जिससे मगरमच्छों का भय न रहे परन्तु अभी यहाँ पर्याप्त पानी नहीं था|
इस तट की परिक्रमा करते हुए मैंने पाया की यहाँ कई गुप्त स्थान थे जहाँ प्रकृति का पूर्ण रसास्वादन किया जा सकता था |
तट रेखा को पकड़ कर सीधे चलते चलते जहाँ इसका समापन होता था वहां एक छोटी पगडंडी सी थी जो तट के दूसरे छोर को मिलाती थी |
यह एक अत्यंत ही श्रांत, प्राकृतिक एवं परित्यक्त स्थान था |
वह अंग्रेजी में कहते हैं न “आल द प्लेस ऐट योर डिस्पोज़ल ” वैसा ही कुछ हाल यहाँ का था |
मैंने अपने कैमरे को तैयार किया और फिर वातावरण में समुद्र तरंगों के अलावा केवल शटर गिरने की ही ध्वनि आती रही |
कहते हैं चिड़िया टापू, जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह का दक्षिणी कोना था पक्षी प्रेमियों के लिए वरदान जैसा था क्योंकि 46 से अधिक प्रजातियां यहाँ पायी जाती थीं |
परन्तु नाम के विपरीत हमें यहाँ 2-3 प्रजातियों को छोड़कर और कुछ भी दिखाई नहीं दिया |
स्थानीय निवासियों के अनुसार पक्षियों को देखने के लिए भोर में आना आवश्यक था अथवा यहाँ से लगभग डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई कर के मुंडा पर्वत नामक स्थान पर जाया जा सकता था |
कुछ लोगों ने बताया कि मुंडा पर्वत के ऊपर तक का रास्ता ठीक ठाक ही है पर रास्ते में कोई गाइड पोस्ट नहीं है |
रास्ते में कुछ छिपकिलियों और हरे रंग के साँपों के दर्शन हो सकते हैं |
चिड़ियाटापू का सूर्यास्त | अंडमान निकोबार का बेहतरीन नज़ारा
हमारे पास तो अभी समय नहीं था सो मैंने यहाँ बैठे बैठे ही सुदूर पर्वत के दर्शन कर लिए |
मैंने विचार किया की यदि वहां जा सकते तो ऊपर से यहाँ का विहंगम दृश्य एक चित्रमाला के सामान देख सकते थे |
सूर्यास्त अब अपने अंतिम चरण में आ चला था और नभ मंडल का रंग पल प्रतिपल परिवर्तित होता जा रहा था |
मैंने देखा की चहुँ ओर बिखरे हुए इन मृत वृक्षों के ठूंठों की प्रतिछाया कभी ऊंचे जिराफ़ तो कभी हवाईजहाज़ का आकार ले लेते थे |
आश्चर्यचकित हो कर मैं इन सभी में कोई न कोई आकृति ढूंढता रहा |
सूर्यदेव ढलते हुए पर्वत श्रृंखला की ओर आ गए थे और अब ऐसा प्रतीत होता था जैसे किसी अंगूठी में एक कांतिमान पुखराज जैसा जड़ा हुआ हो |
समय के साथ साथ आकाश और पानी के रंग पीले तत्पश्चात लाल होते हुए गहरे बैंगनी से होने लगे |
हम सब लोग प्रकृति की इस लीला का आनंद लेने में व्यस्त थे कि तभी सीटियों की ध्वनि सुनाई दी |
पांच बज के पंद्रह हो गए थे और सूर्यास्त उपरान्त यहाँ के सुरक्षा कर्मी सभी को स्थान छोड़ने का निवेदन कर रहे थे |
अब सूर्य पर्वत के पीछे शरण ले चुके थे और वातावरण अंधकारमय हो चला |
मैंने देखा अब पानी भी धीरे धीरे बढ़ने लगा था और यहाँ का शांत वातावरण अब पुनः कोलाहलपूर्ण हो चला था |
हमने भी इस स्थान से विदा ली और अपने होटल के लिए निकल पड़े |
चिड़ियाटापू | 15 यात्रा टिप्स
1. अंडमान निकोबार में स्थित चिड़ियाटापू के मुख्य आकर्षण जंगल ट्रेक, चिड़िया टापू जैविक पार्क, चिड़िया टापू समुद्र तट, और मुंडा पहाड़ हैं।
2. पोर्ट ब्लेयर से आप निजी वाहन या बस (सुबह 7.00 बजे से शाम 5.00 बजे तक उपलब्ध) द्वारा इस स्थान तक पहुंच सकते हैं |
यहाँ पहुंचने में आपको 45-60 मिनट लगेंगे।
3. चिड़ियाटापू से पोर्ट ब्लेयर तक की आखिरी बस शाम 5.00 बजे है | टैक्सी का किराया लगभग 2000-2500 रु तक होता है |
4. इस स्थान पर जाने से पहले अपने साथ कुछ दवाएं / सुरक्षा किट ज़रूर रख लें |
7. यहाँ मगरमच्छ की उपस्थिति के कारण आपको समुद्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है|यहां रखा गया बोर्ड दिखाता है कि नवीनतम दुर्घटना कब हुई है । उम्मीद है कि कोई भी इस सूची में अपना नाम जोड़ना नहीं चाहेगा |
8. अंडमान निकोबार जब भी आयें तब जैविक पार्क, मुंडा पहाड़ और चिड़ियाटापू समुद्र तट का सम्पूर्ण आनंद लेने के लिए यहां पूरे एक दिन पिकनिक की योजना बनाएं।
11. कोशिश करें कि चिड़ियाटापू /मुंडा पहाड़ समुद्रतट पर 4 बजते बजते पहुँच जाएँ जिससे आस पास के वातावरण और सूर्यास्त का बेहतर आनंद ले सकें|