The Cannonball Tree : दक्षिण अमेरिका के इस बम गोले के पेड़ को हमने बम भोले के पेड़ के रूप में अपना लिया है। |
बेंगलुरू के येलहांका (Yelahanka) इलाके में एक जगह है पुत्त्नहल्ली (Puttenahalli)। बेंगलोर और उसके आसपास तमाम झीलें हैं। सो पुतनहल्ली में भी एक झील है।
इस झील के गिर्द कुछ बरस पहले एक पक्षी विहार बना दिया गया है नाम है गज़ीबो। पर्यावरण चेतना को बढाने के मकसद से बने इस पक्षी विहार का कोई प्रवेश शुल्क नहीं है सो सुबह की सैर के लिये यह जगह बहुत मुफीद है।
पहले दिन मार्निंग वाक के लिए इसमें गया तो गेट से कुछ कदम चलने के बाद अचानक ठिठक गया। वजह कोई अनूठा पक्षी नहीं एक पेड़ था। यह अद्भुत पेड़ अपनी पचास साल उम्र में इससे पहले कभी नहीं देख था।
पेड़ के तने पर जड़ं से महज दो तीन फुट ऊपर छिले नारियल के से, थोड़े धूसर गंदे और बिल्कुल गोल बड़े बड़े फलों का गुच्छे लटके थे। फल ऊपर भी लगे थे पर यहां कुछ ज्यादा ही थे। तने का एक पूरा हिस्सा इनसे ढंक गया था। मुझे बेल, कैथा, कटहल सब अचानक याद आ गए पर यह तो सब से अलग था।
मैंने सोचा कि बगल में ही इस पक्षी विहार का ऑफिस से है कोई है तो पूछता हूं। हालांकि मैं हिंदी भाषी और यहां कन्नड का चलन पर सोचा पूछ कर देखने में क्या हर्ज है। ऑफिस में कोई अधिकारी तनी सुबह नहीं था पर एक व्यक्ति वहीं मिला शायद कर्मचारी जो वहीं रहता और देख रेख करता हो। पता नहीं पर उससे बात की।
तमिल, कन्नड़ और हिंदी अंग्रेजी के मेल वाली भेल भाषा में उसने बहुत सी जानकारियां दीं। पता चला कि यह कैनन बॉल ट्री (cannon ball tree) है और यह उसके नौकरी में यहां आये हुए से भी बहुत पुराना है। यह भी कि यह बहुत पवित्र पेड़ है। शंकर भगवान से इसका सीधा संबंध है। हमारे तमिलनाडु में ये बहुत हैं, साउथ में आपको बहुत से पुराने शिव मंदिरों के पास ये ज़रूर मिलेंगे।
वह बता रहा था और मैं सोच रहा था कि भगवान शिव से संबंधित है पेड़ पर मैंने उनकी ससुराल मतलब उत्तरांचल में तो इसे कहीं नहीं देखा, हिमालय, कैलाश पर भी इसके होने की उम्मीद मुझे नहीं लगती। वह बता रहा था, अभी इस पर फूल नही दिख रहे जब इसके फूल लगें तब देखिएगा, क्या ही गज़ब का होता है, मस्त खुशबू भी। मैंने पूछा कि किस मौसम में लगता है तो उसने कहा, फूल कभी भी दिख सकते हैं वह मौसम के गुलाम नहीं हैं। यह पेड़ सदाबहार है, सब भगवान भोले की कृपा है।

अधिकारी था नहीं और उसके पास सुबह को समय भी खूब था सो उसने मुझे और भी कई बातें बताईं , जिनमें से बहुत कम ही मेरे पल्ले पड़ीं। आखिर तमिल कन्नड़, हिंदी अंग्रेजी का यह भेल कितने हजम हो पाती। मैंने ठेठ यूपियन व्यवहार दिखाते हुये विनम्रता से कहा कि क्या इसका एक फल तोड़ लूं, असने कह नहीं, मैंने कह किसी को क्या पता चलेगा, उसने कहा इल्लै, नो, नहीं।
मैंने कहा, पूछ रहा हूं, कितने में एक फल देते हो, वह हंसा फिर बोला नहीं, क्या करेंगे इसे सुवर भी इंट्रेस्ट ले कर नहीं खाते बहुत बदबूदार होता है जैसे कोई आटा वगैरह सड़ गया हो। मैं पर्याप्त बेईज्जती महसूस की। मैंने उसका नाम पूछा, वह कोई शिव कुमारन जी थे। मैंने उसे धन्यवाद कहा और उस पेड़ को घूरता हुआ आगे बढ गया, यह सोचते हुए कि इसके बारे में और पता करना होगा यह पेड़ तो विचित्र है।
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यह पक्षी विहार गज़ीबो मेरे निवास से फर्लांग भर से भी कम दूरी पर है सो इसे बार बार देखना संभव था। शिव कुमारन ने इसके फूल के बारे में उत्सुकता जगा दी थी। पता चला कि इसके फूलों को हिन्दी में ‘शिवलिंग पुष्प’ तथा ‘नाग चम्पा’, कन्नड़ और तमिल में ‘नागलिंग पुष्प’ और तेलगू में ‘मल्लिकार्जुन पुष्प’ के नाम से पुकारा जाता है। शायद इसीलिये हिन्दू इसे पवित्र, पूज्य ,धार्मिक तथा भगवान शंकर से सम्बन्धित वृक्ष मानते हैं।
पंखुड़ियों के बीच में मौजूद जायांग की आकृति शिवलिंग की तरह होती है और इसे घेरे हुई पंखुडियां इस तरह मुड़ी होती हैं मानो वे नाग के फन हों। थोड़ी श्रद्दा वाली नजरों से देखें तो लगेगा कि यह छह मोटीमोटी पंखुड़ियों वाले चमकीले रंगीन और खुशबूदार फूल नहीं है बल्कि कई नाग अपने फनों को उठा कर शिवलिंग को घेरे हुए हों।
इस आकार के लिये इसे शिवकमल या कैलाशपति भी कहा जाता है।फूल सुगंधित होते हैं सो इस पर मधुक्खियां, भंवरे, कुछ पक्षी, वगैरह भी आती हैं और उन्हीं के जरिये परागण होता है। परागण के बाद से फल बनने और धूसर मटियाले से तोप के गोलों की तरह बड़े बड़े परिपक्व होने में लगभग नौ महीने से कम समय नहीं लगता।

तने से बेंत सरीखी डंढल पर लगे फल झुंड में होते हैं कई डंडिया इतनी लम्बी भी होती हैं कि फल जमीन चूमने लगे, हालांकि ऐसा मुझे दिखा नहीं। जब ये फल पक जाते हैं और पेड़ का साथ छोड़ देते हैं तो नीचे गिरते ही बहुत तेज आवाज़ के साथ फटते हैं। इतनी तेज कि आस पास के लोग चौंक जाएं, घबरा जायें। फल फटता है तो इसके पीले रंग का गूदा काफी हद तक बिखर जाता है।
बस थोड़ी देर बीतते बीतते यह पीले रंग का गूदा हवा के संपर्क में आकर नीले हरे रंग का सा हो जाता है और तब अच्छी खासी बदबू फैलती है। स्वाद का तो पता नहीं पर शायद इसकी बदबू के चलते कोई शरीफ जानवर, पक्षी इसके पास नहीं फटकते। सुवर, चील, गिद्ध और चमगादड़ इसे खाते हैं। गूदे में इसके रोंयेदार बीज होते हैं जो इनकी पाचन शक्ति के बूते से बाहर है । और यह अनपचे बीज बाहर निकल कर इसके नये पौधे बनते हैं।
कैनन बाल या तोपगोले वाला पेड़ उत्तर भारत में नहीं पाया जाता। यह दक्षिण भारत में ही मिलता है, देश के कुछ दूसरे ऐसे हिस्से में जो नम वातावरण वाले हैं यह मिलता है लेकिन इसकी संख्या कम ही है। इसके पेड़ 35 मीटर तक ऊंचे हो सकते है, तने का घेरा दो ढाई फुट तक का।
यह पेड़ अपनी सारी पतियां तकरीबन हफ्ते भर के भीतर अचानक गिरा देता है, बिन कोई संकेत दिये, और दस दिन के भीतर ही नई हल्के हरे तकरीबन धानी रंग की चमकीली पत्तियों से लद भी जाता है। पतझड़ और बसंत के बीच इतना काम फासला होता है कि कुछ पता ही नहीं चलता। कौन कब आया कौन कब गया।
यह बात शत प्रतिशत सही है कि संसार की कोई वनस्पति निरर्थक या अनुपयोगी नहीं है, कैनन बाल ट्री भी कई काम आता है। इसमें बहुत से औषधीय गुण हैं। यह एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल है।दांत दर्द, हाई ब्लड प्रेशर, फोड़े फुंसी, चमड़ी के रोग, दर्द और सूजन के अलावा सर्दी और पेटदर्द में भी इसके अवयव काम आते हैं। फलों की दुर्गंध कीटों को पास नहीं आने देती ।
अनाज भंडार के बाहर रख सकते हैं। अगर इसका पौधा क्लोरीन जैसी गैसों के संपर्क में आता है, तो यह कुछ ही घंटों में नष्ट हो जाता है, अलग बात है कि स्थितियां अनुकूल हो जाने पर फिर पनप जाता है। इसलिये इसे प्रदूषण का इंडीकेटर भी कह सकते हैं।
अवगुण एक है। इसे संसार के खतरनाक पेडों की श्रेणी में दूसरा स्थान प्राप्त है। कुछ देशों में इसे फुटपाथों या दर्रों के पास लगाना मना है। वजह यह कि इसके नीचे कोई गया या गुजरा और इसका फल उसके सर पर गिरा तो फल तो फटेगा ही सिर भी। दूसरे इसके अचानक गिरने और फटने की तेज आवाज से कोई भी सवार, चालक विचलित हो सकता है, दुर्घटना घट सकती है।

बताता चलूं कि मुख्यतः: दक्षिण भारत में पाया जाने वाला यह पेड़ दक्षिण अफ्रीका का मूल निवासी है यह वहीं से यहां आया है। इसका वानस्पतिक नाम कौरौपीटा गियानेंसिस (Couroupita guianensis) है और यह लेसीथैडेसी परिवार का सदस्य है।
पर दक्षिण अमेरिका के इस बम गोले के पेड़ (cannonball tree) को हमने बम भोले के पेड़ के रूप में अपना लिया है। अपने वानस्पतिक परिवार में शामिल कर लिया है। यहां एक और विदेशी मेहमान पेड़ दिखा, अफ्रीकन ट्यूलिप का पेड़ यह भी गज़ब का सुंदर और अज़ब खासियत वाला है, पर इसके बारे में फिर कभी।
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